Intro: ए ग़ज़्ज़ा, तुझसे तेरे दर्द का फ़साना कहूँ,
तेरी मिट्टी से वफ़ा का अफ़साना कहूँ।
शहीदों के लहू से जो तेरी ज़मीं सुर्ख है,
तेरी मिट्टी को साक़ी कहूँ कि पैमाना कहूँ।
(Chorus group chorus):
ए ग़ज़्ज़ा, तुझसे तेरे दर्द का फ़साना कहूँ
Verse 1: ये ख़ामोश हवाएँ, और सिसकते हुए दिल,
एक तरफ़ सोग और दीवार से परे महफ़िल
आँखें नहीं नबिना मगर अंधे हैं उनके दिल
हिदायत जो मिले तो ख़ुदा को नहीं सजदा मुश्किल
(Chorus group chorus):
ए ग़ज़्ज़ा, तुझसे तेरे दर्द का फ़साना कहूँ,
Verse 2: तेरे बच्चे, तेरी इज़्ज़त का निशान,
जन्नत की झलक है तेरे शहीदों का ईमान
तेरे शहीदों के जो तेरी गलियों में निशान मिले
उन कूचों में मग़रिब न मिले, न शैतान मिले..
(Chorus group chorus):
ए ग़ज़्ज़ा, तुझसे तेरे दर्द का फ़साना कहूँ,
Verse 3:
तेरी तन्हाइयाँ, तेरी बेबसी और उज़्तराब देखने वाला
लगता नहीं अपना ये ज़माना क्या बेगाना कहूँ
तेरे कूचों का अंधेरा हमेशा के लिए तो नहीं,
सूरज का नूर शमा से रुकेगा तो नहीं।
(Chorus group chorus):
ए ग़ज़्ज़ा, तुझसे तेरे दर्द का फ़साना कहूँ,
Verse 4:
सबर कर के वो कल भी ज़रूर आएगा
तेरा परचम दरिया से समंदर तक लहराएगा।
तेरे ज़ख़्म होंगे आँसुओं के गवाह
कुदस की ज़मीन पर सजदा और इंसाफ़ किया जाएगा
(Chorus group chorus):
ए ग़ज़्ज़ा, तुझसे तेरे दर्द का फ़साना कहूँ,
Verse 5:
सबर कर कि वो सहर ज़रूर आएगी,
ज़ालिम कहेगा, “ऐ काश मैं तेरी ख़ाक ही होता”
ख़ुदा के सामने यूँ न इंसाफ़ पर रोता..
सबर कर कि वो अज़ान भी दी जाएगी,
ए ग़ज़्ज़ा, तुझसे तेरे दर्द का फ़साना कहूँ,